26-02-84  ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

बापदादा की अद्भुत चित्रशाला

दिलाराम बापदादा अपने समीप और समान बच्चों प्रति बोले:-

बापदादा आज अपनी चित्रशाला को देख रहे हैं। बापदादा की चित्रशाला है यह जानते हो? आज वतन में हर बच्चे के चरित्र का चित्र देख रहे थे। हर एक का आदि से अब तक का चरित्र का चित्र कैसा रहा! तो सोचो चित्रशाला कितनी बड़ी होगी! उस चित्र में रहेक बच्चे की विशेष तीन बातें देखीं! एक- पवित्रता की पर्सनैलिटी। दूसरा - रीयल्टी की रायल्टी। तीसरा - सम्बन्घों की समीपता। यह तीन बातें हरेक चित्र में देखीं।

प्युरिटी की पर्सनैलिटी आकार रूप में चित्र के चारों ओर चमकती हुई लाइट दिखाई दे रही थी। रीयल्टी की रायल्टी चेहरे पर हर्षितमुखता और स्वच्छता चमक रही थी और सम्बन्धों की समीपता मस्तक बीच चमकता हुआ सितारा कोई ज्यादा चारों ओर फैली हुई किरणों से चमक रहा था, कोई थोड़ी-सी किरणों से चमक रहा था। समीपता वाली आत्मायें बाप समान बेहद की अर्थात् चारों ओर फैलती हुई किरणों वाली थीं। लाइट और माइट दोनों में बाप समान दिखाई दे रही थीं। ऐसे तीनों विशेषताओं से हरेक चरित्र का चित्र देखा। साथ-साथ आदि से अन्त अर्थात् अब तक तीनों ही बातों में सदा श्रेष्ठ रहे हैं वा कब कैसे कब कैसे रहे हैं उसकी रिजल्ट हर-एक के चित्र के अन्दर देखी। जैसे स्थूल शरीर में नब्ज से चेक करते हैं कि ठीक गति से चल रही है वा नीचे ऊपर होती है। तेज है वा स्लो है। इससे तन्दरूस्ती का मालूम पड़ जाता है। ऐसे हर चित्र के बीच ह्दय में लाइट नीचे से ऊपर तक जा रही थी। उसमें गति भी दिखाई दे रही थी कि एक ही गति से लाइट नीचे से ऊपर जा रही है या समय प्रति समय गति में अन्तर आता है। साथ-साथ बीच-बीच में लाइट का कलर बदलता है वा एक ही जैसा रहा है। तीसरा - चलते-चलते लाइट कहाँ-कहाँ रूकती है वा लगातार चलती रहती है। इसी विधि द्वारा हरेक के चरित्र का चित्र देखा। आप भी अपना चित्र देख सकते हो ना।

पर्सनैलिटी, रायल्टी और समीपता इन तीन विशेषताओं से चेक करो कि मेरा चित्र कैसा होगा? मेरे लाइट की गति कैसी होगी? नम्बरवार तो हैं ही। लेकिन तीनों विशेषतायें और तीनों प्रकार की लाइट की गति आदि से अब तक सदा ही रही हो- ऐसे चित्र मैजारिटी नहीं लेकिन मैनारटी में थे। तीन लाइटस की गति और तीन विशेषतायें छह बातें हुई ना। छह बातों में से मैजारिटी चारपां च तक और कुछ तीन तक थे। प्युरिटी की पर्सनैलिटी का लाइट का आकार किसका सिर्फ ताज के समान फेस के आसपास था और किसका आधे शरीर तक। जैसे फोटो निकालते हो ना। और किसका सारे शरीर के आस-पास दिखाई दे रहा था। जो मंसा-वाचा-कर्मणा तीनों में आदि से अब तक पवित्र रहे हैं। मंसा में स्वयं प्रति या किसी प्रति व्यर्थ रूपी अपवित्र संकल्प भी न चला हो। किसी भी कमज़ोरी वा अवगुण रूपी अपवित्रता का संकल्प भी धारण नहीं किया हो, संकल्प में जन्म से वैष्णव संकल्प बुद्धि का भोजन है। जन्म से वैष्णव अर्थात् अशुद्धि वा अवगुण, व्यर्थ संकल्प को बुद्धि द्वारा, मंसा द्वारा ग्रहण न किया हो। इसी को ही सच्चा वैष्णव वा बाल ब्रह्मचारी कहा जाता है। तो हरेक के चित्र में ऐसे प्युरिटी की पर्सनैलिटी की रेखायें लाइट के आकार द्वारा देखीं। जो मंसा- वाचा-कर्मणा तीनों में पवित्र रहे हैं! (कर्मणा में सम्बन्ध, सम्पर्क सब आ जाता है) उनका मस्तक से पैर तक लाइट के आकार में चमकता हुआ चित्र था। समझा! नॉलेज के दर्पण में अपना चित्र देख रहे हो? अच्छी तरह से देख लेना कि मेरा चित्र क्या रहा जो बापदादा ने देखा। अच्छा!

मिलने वालों की लिस्ट लम्बी है। अव्यक्त वतन में तो न नम्बर मिलेगा और समय की कोई बात है। जब चाहे जितना समय चाहे और जितने मिलने चाहें मिल सकते हैं। क्योंकि वह हद की दुनिया से परे हैं। इस साकार दुनिया में यह सब बन्धन हैं। इसलिए निर्बन्धन को भी बन्धन में बंधना पड़ता है। अच्छा –

टीचर्स तो सन्तुष्ट हो गये ना। सभी को अपना पूरा हिस्सा मिला ना। निमित्त बनी हुई विशेष आत्मायें हैं। बापदादा भी विशेष आत्माओं का विशेष रिगार्ड रखते हैं। फिर भी सेवा के साथी हैं ना। ऐसे तो सभी साथी हैं फिर भी निमित्त को निमित्त समझने में ही सेवा की सफलता है। ऐसे तो सर्विस में कई बच्चे बहुत तीव्र उमंग उत्साह में बढ़ते रहते हैं फिर भी निमित्त बनी हुई विशेष आत्माओं को रिगार्ड देना अर्थात् बाप को रिगार्ड देना है और बाप द्वारा रिगार्ड के रिटर्न में दिल का स्नेह लेना है। समझा! टीचर्स को रिगार्ड नहीं देते हो लेकिन बाप से दिल के स्नेह का रिटर्न लेते हो। अच्छा –

ऐसे सदा दिलाराम बाप द्वारा दिल का स्नेह लेने के पात्र अर्थात् सुपात्र आत्माओं को सदा स्वयं को प्युरिटी की पर्सनैलिटी, रायल्टी की रीयल्टी में अनुभव करने वाले समीप और समान बच्चों को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।’’

यु.के.ग्रुप से अव्यक्त बापदादा की मुलाकात

सभी सर्व राजो से सम्पन्न राज़युक्त, योगयुक्त आत्मायें हो ना! शुरू से बापदादा का नाम चारों ओर प्रत्यक्ष करने के निमित्त आत्मायें हो। बापदादा ऐसे आदि रत्नों को, सेवा के साथियों को देखकर सदा खुश होते हैं। सभी बापदादा के राइट-हैण्ड ग्रुप हो। बहुत अच्छे-अच्छे रत्न हैं। कोई कौन सा, कोई कौन सा, लेकिन हैं सब रत्न। क्योंकि स्वयं अनुभवी बन औरों को भी अनुभवी बनाने के निमित्त बनी हुई आत्मायें हो। बापदादा जानते हैं कि सभी कितने उमंग उत्साह से याद और सेवा में सदा मगन रहने वाली आत्मायें हैं। याद और सेवा के सिवाए और सब तरफ समाप्त हो गये। बस एक हैं, एक के हैं, एकरस स्थिति वाले हैं यही सबका आवाज़ है। यही वास्तविक श्रेष्ठ जीवन है। ऐसी श्रेष्ठ जीवन वाले सदा ही बापदादा के समीप हैं। निश्चयबुद्धि का प्रत्यक्ष प्रमाण देने वाले हैं। सदा, वाह मेरा बाबा और वाह मेरा श्रेष्ठ भाग्य - यही याद रहता है ना। बापदादा ऐसे स्मृति स्वरूप बच्चों को देखकर सदा हर्षित होते हैं कि - वाह मेरे श्रेष्ठ बच्चे। बापदादा ऐसे बच्चों के गीत गाते हैं। लंदन विदेश के सेवा का फाउण्डेशन हैं। आप सब सेवा के फाउण्डेशन स्टोन हो। आप सबके पक्के होने के प्रभाव से सेवा में वृद्धि होती जा रही है। भले फाउण्डेशन वृक्ष के विस्तार में छिप जाता है लेकिन है तो फाउण्डेशन ना। वृक्ष के विस्तार को सुन्दर देख उस तरफ ज्यादा नजर होती है। फाउण्डेशन गुप्त रह जाता है। ऐसे आप भी थोड़ा सा निमित्त बन औरों को चांस देने वाले बन गये लेकिन फिर भी आदि, आदि है। औरों को चांस देकर आगे लाने में आपको खुशी होती है ना। ऐसे तो नहीं समझते हो कि यह डबल विदेशी आये हैं तो हम छिप गये हैं? फिर भी निमित्त आप ही हैं। उन्हों को उमंग-उत्साह देने के निमित्त् हो। जो दूसरों को आगे रखता है वह स्वयं आगे है ही। जैसे छोटे बच्चे को सदा कहते हैं आगे चलो, बड़े पीछे रहते हैं। छोटों को आगे करना ही बड़ों का आगे होना है। उसका प्रत्यक्षफल मिलता ही रहता है। अगर आप लोग सहयोगी नहीं बनते तो लंदन में इतने सेन्टर नहीं खुलते। कोई कहाँ निमित्त बन गये कोई कहाँ निमित्त बन गये। अच्छा –

मलेशिया, सिंगापुर

सभी अपने को बाप की स्नेही आत्मायें अनुभव करते हो! सदा एक बाप दूसरा न कोई इसी स्थिति में स्थित रहते हो! इसी स्थिति को ही एकरस स्थिति कहा जाता है। क्योंकि जहाँ एक हैं वहाँ एकरस हैं। अनेक हैं तो इस स्थिति भी डगमग होती है। बाप ने सहज रास्ता बताया है कि एक में सब कुछ देखो। अनेकों को याद करने से, अनेक तरफ भटकने से छूट गये। एक हैं, एक के हैं, इसी एकरस स्थिति द्वारा सदा अपने को आगे बढ़ा सकते हो।

सिंगापुर और हांगकांग

को अभी चाइना में सेनटर खोलने का संकल्प करना चाहिए। सारे चाइना में अभी कोई केन्द्र नहीं है। उनहों को कनेक्शन में लाते हुए अनुभव कराओ। हिम्मत में आकर संकल्प करो तो हो जायेगा। राजयोग से प्रभु प्रेम, शान्ति, शक्ति का अनुभव कराओ, तो आत्मायें आटोमेटिकली परिवर्तन हो जायेंगी। राजयोगी बनाओ, डीटी नहीं बनाओ, राजयोगी डीटी आपेही बन जायेंगे। अच्छा-